हरियाणा में गौशालाएं और नंदी शालाएं घोर अवस्था की शिकार हैं?
हरियाणा में गौशालाएं और नंदी शालाएं घोर अवस्था की शिकार हैं?
“गौशालाओं” के “मौतशालाओं” में बदलने के लिए जिम्मेदार कौन??
हर साल हजारों गोवंश तिल-तिल कर भूख से मरने को मजबूर
गौ सेवा आयोग अपने फर्ज को निभाने में पूरी तरह से रहा विफल
हिसार। क्या यह सही है कि हरियाणा में गौशालाएं और नंदी शालाएं घोर अवस्था की शिकार हैं?
– क्या यह सही है कि गौशालाओं ने “मौत शालाओं” का रूप ले लिया है?
– क्या यह सही है कि गौशालाओं और नंदी शालाओं में हर साल हजारों गोवंश की मौत हो रही है?
– क्या यह सही है कि अधिकांश गोशाला और नंदीशाला गोवंश के लिए मौत का शिकंजा साबित हो रही है?
– क्या यह सही है कि गौशालाओं और नंदी शालाओं में चारे की कमी के कारण गोवंश भूख के कारण तिल-तिल कर मरने को मजबूर हैं?
– क्या यह सही है कि बचाव का प्रबंध नहीं होने के चलते हर बार सर्दी के कारण हजारों गाय मौत का शिकार हो जाती हैं?
-क्या यह सही है कि गौ सेवा आयोग अपने फर्ज को निभाने में पूरी तरह से विफल साबित हुआ है?
– क्या यह सही है कि गौशाला और नंदी शाला की मैनेजमेंट पूरी तरह से “सेवा” की बजाय “मेवा” हजम कर रही है?
– क्या यह सही है कि हरि के प्रदेश में गायों की दुर्दशा और मौत के लिए हम सभी जिम्मेदार हैं?
उपरोक्त सभी सवालों का जवाब हां में है।
गोरक्षा के बड़े-बड़े दावा करने वाली हरियाणा सरकार में गोवंश सबसे अधिक दुर्दशा का शिकार है। आरटीआई से यह खुलासा हुआ है कि अकेले सिरसा जिले में ही 1 साल के दौरान गोशालाओं और नंदी शालाओं में 10,000 से अधिक गोवंश मौत का शिकार हो गए।
इसी तरह हिसार के ढंडूर गौशाला में चंद ही दिनों में सर्दी और भुखमरी के कारण 1500 गोवंश मौत के मुंह में समा गए।
हकीकत यही है कि प्रदेश की 90 फ़ीसदी गौशालाएं और नंदीशालाएं बेहद दुर्दशा और व्यवस्था की शिकार हैं।
अधिकांश गोशालाओं और नंदी शालाओं में गोवंश के लिए न तो चारे का पर्याप्त स्टाक है ना ही वहां पर सर्दी से बचाव के लिए प्रबंध हैं और ना ही सफाई के लिए पर्याप्त व्यवस्था है।
भुखमरी और सर्दी के कारण हरियाणा में हर साल नदी शालाओं और गौशालाओं में हजारों गोवंश मर जाते हैं। हरि के प्रदेश हरियाणा में गोवंश को माता के समान माना जाता है। आज उसी प्रदेश में भ्रष्टाचार और कुव्यवस्था के कारण हजारों गोवंश तिल तिल कर मरने को मजबूर हैं। पेट की आग बुझाने के लिए गोवंश प्लास्टिक खाकर अपनी मौत का प्रबंध खुद कर रहा है।
सरकार के बड़े-बड़े दावों के बीच गौ सेवा आयोग अपने फर्ज पर खरा उतरने में पूरी तरह नाकाम रहा है। गौ सेवा आयोग के पदाधिकारी सिर्फ चंडीगढ़ में बैठकर बड़े-बड़े दावे करते हैं। बड़ी-बड़ी गौशालाओं के चक्कर लगाने की औपचारिकता पूरी कर ली जाती है। अव्यवस्था की शिकार गौशालाओं में हालात को सुधारने के लिए गौ सेवा आयोग कोई भी कारगर कदम नहीं उठा पाया है।
90 फ़ीसदी गौशालाओं और नंदी शालाओं में खाने का पर्याप्त प्रबंध नहीं होने के कारण गोवंश को अमानवीय तरीके से मरने के लिए छोड़ दिया गया है।
क़त्लखानों में गौवंश ले जाने की पाबंदी के चलते प्रदेश की गौशालाओं और नदी शालाओं में क्षमता से अधिक गोवंश को रखा गया है।
इस गोवंश का पेट भरने की चिंता न तो प्रशासन को है और ना ही गौशाला के प्रबंधकों को। सियासी दल और नेता भी सिर्फ बयानबाजी के अलावा और कोई भी सक्रिय सहयोग नहीं कर रहे हैं। इसी कारण प्रदेश की गौशाला और नंदी शालाओं में गोवंश की मौत का सिलसिला लगातार जारी है।
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गौ सेवा आयोग के जरिए बड़े बजट का इंतजाम करने के बावजूद प्रदेश की गौशालाओं और नंदीशालाओं के हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। कुप्रबंधन की शिकार गौशालाओं में बजट को गायों के खानपान और प्रबंध के ऊपर खर्च करने की बजाय व्यक्तिगत जेबों में फिट किया जा रहा है। इसी कारण गोशालाओं और नंदीशालाओ में चारे का पर्याप्त प्रबंध नहीं हो पाता है। प्रदेश के गौशाला आयोग ने अपनी जिम्मेदारी को ईमानदारी से नहीं निभाया है जिसके चलते गौशाला और नंदी शालाओं में अव्यवस्था और कुप्रबंधन फैल गया है।
दो तिहाई गौशालाओं और नंदी शालाओं में गोवंश का पेट भरने के पूरे प्रबंध नहीं हैं। इसके अलावा सर्दी से बचाव के लिए भी काफी नंदी शालाओं और गौशालाओं में प्रबंध नहीं किए गए हैं। इसी कारण भुखमरी और सर्दी के कारण हर साल हजारों गोवंश मौत का शिकार हो जाते हैं। क़त्लखानों में मारे जाने से रोकने के लिए सरकार ने गोवंश की तस्करी पर पाबंदी लगाई है लेकिन यह पाबंदी गोवंश के लिए नासूर बन गई है।
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क़त्लखानों में जाकर एक ही झटके में मौत हो जाती है लेकिन गोशालाओं और नंदी शालाओं में गोवंश को नारकीय हालात में एक-एक सांस बदहाली में जीनी पड़ती है।बूढ़े, कमजोर और बीमार गोवंश को खासतौर पर बस इंतजामी के कारण दुर्दशा का शिकार होना पड़ता है और नर्क से भी ज्यादा बदत्तर हालात में जिंदगी जीनी पड़ती है।काफी गौशालाओं और नंदी शालाओं में सुरक्षा के भी प्रबंध नहीं है जिसके चलते आवारा कुत्ते इनमें घुसकर बीमार और लाचार गोवंश को जीते जी चीर-फाड़ डालते हैं।प्रदेश की सरकार गोवंश की देखरेख के लिए गौ सेवा आयोग का गठन करने के साथ-साथ बड़े बजट का भी प्रबंध करती है लेकिन यह बजट गोवंश की भलाई और पेट भराई पर खर्च होने की बजाय भ्रष्टाचार के सिस्टम में खप रहा है।इसी कारण प्रदेश में गोवंश गौशालाएं “मौतशालाएं” बन गई है और हर साल इनमें हजारों गोवंश दम तोड़ रहे हैं।खुद सरकार की आरटीआई रिपोर्ट ने यह बता दिया है कि अकेले सिरसा जिले में ही 1 साल में 10,000 से अधिक गोवंश की मौत हो गई। हिसार, बहादुरगढ़ और दूसरी गौशालाओं में भी हर साल हजारों गोवंश अकाल मौत झेल रहा है। गोवंश की इस दुर्दशा और अकाल मौतों के लिए पूरा सिस्टम जिम्मेदार है।लीपापोती करने के अलावा कुछ भी नहीं किया जाता। गोवंश की संख्या के अनुसार न तो खाने का प्रबंध किया जाता है और ना ही मौसम की मार से बचाने के लिए शैडो का प्रबंध किया जाता है।गौशालाओं और नंदी शालाओं में गोवंश की मौत प्रदेश को शर्मसार कर रही है। ऐसे में यह सरकार का फर्ज है कि वह गौ सेवा आयोग में उन लोगों को शामिल करें जो गोवंश की सेवा करने का जज्बा रखते हैं ना कि बड़े-बड़े पद बबंगले और गाड़ियां हासिल करने के लिए लेते हैं। अगर सरकार गोवंश का पेट नहीं भर सकती है तो उसे उन्हें क़त्लखानों में भेजने की इजाजत दे देनी चाहिए ताकि वे नरकीय मौत झेलने की बजाय एक झटके में ही मौत के आगोश में चले जाएं।